संजीव शुक्ल ‘अतुल’
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लोकतंत्र में लोक नहीं ,है केवल तंत्रों का जाला
लोग पी रहें हैं मन भर अब देश बन गया मधुशाला।
पाखंडी सरकार चलाते ,देश-प्रेम का स्वांग रचाते
जन -सेवक का ओढ़ लबादा ,कुर्सी पर अधिकार जताते .
सत्ता की मदहोशी में तुमने क्या -क्या है कर डाला
लोग पी रहें हैं मन-भर .अब देश बन गया मधुशाला।
वोट की खातिर मजहब बांटें ,जाति -धर्म पर प्रेम दिखाते .
आपस में में लड़वाकर सबको ,गीता का उपदेश सुनाते .
लोकतंत्र के रंगमंच पर घोटालों का नया पियाला
लोग पी रहें हैं मन-भर .अब देश बन गया मधुशाला।
-संजीव शुक्ल ‘अतुल’
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