संजीव शुक्ल ‘अतुल’
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प्रेमबंधन में स्वयमेव बंध कर चली।
सपनों के झरोखे से मैं निकली।
भावों के स्यंदन पर चढ़कर, अपने प्रियतम को अपनाकर,
मैं आज कहाँ किस ओर चली।
मैं बनी फूल,किसलय,लतिका मनमोहन को मोहने चली । ।
– संजीव शुक्ल ‘अतुल’
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