- 26 Posts
- 6 Comments
जो अखबारों में छपते रहते हैं, उनके यहां छापा पड़े ठीक नहीं। अरे भाई, जनसेवा करते-करते अगर थोड़ा-बहुत कमाना हो गया, तो इसका मतलब क्या सरकार छापा डलवायेगी, लालू जी के यहां छापा… घोर अनाचार… समाजवाद को नया आयाम देने वाले के यहां छापा… घोर कलयुग…।
अब आप ही बताइए अगर किसी ने समाजवाद को ऊपर उठाते-उठाते खुद को थोड़ा सा ऊपर उठा लिया, तो कौन-सा गुनाह कर दिया? आखिर समाजवाद भी तो सबकी उन्नति की बात करता है। ग़रीब तबके के आर्थिक स्तर को उठाने की बात करता है। कहने का मतलब समाजवाद सबको आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की वकालत करता है। ऐसे में अगर किसी ने शुरुआत खुद को उठाने से कर दी तो क्या CBI रेड डालेगी?
एक चारा घोटाला क्या हो गया, पूरा मीडिया लालूजी के पीछे पड़ गया। घोटाला तो सबने देखा, लेकिन इस घोटाले ने लालूजी की समाजवादी आत्मा को कितना कष्ट पहुंचाया होगा, यह किसी ने नहीं देखा। घोटाला हुआ है और निश्चित रूप से हुआ है, यह लालूजी भी मानते हैं। लेकिन न चाहते हुए भी आपने यह सब किया तो सिर्फ इसलिए कि लोग-बाग ये जान सकें कि चारा जैसे गौण क्षेत्र में भी घोटाला किया जा सकता है, बल्कि निर्विघ्न रूप से किया जा सकता है। जहां चाह वहां राह।
लालूजी ने अपने को बड़ा इंटेलिजेंट समझने वाले इंटेलिजेंस ब्यूरो को बता दिया कि जहां तुम्हारी बुद्धि काम करना बंद कर देती है, हम वहीं से सोचना शुरू करते हैं। कुल मिलाकर यह घोटाला नहीं, बल्कि क्रिया-आधारित एक शिक्षण पद्धति है, जिससे सीख लेकर CBI भविष्य में किये जाने वाले घोटालों का आसानी से पर्दाफाश कर सकती है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि यह हमारे राजनीतिक इतिहास में इकलौता ऐसा घोटाला है, जो अपने अंदर लोकहित की भावना पाले हुए है, इको-फ्रेंडली होना इस घोटाले कि अनुपम विशेषता है। अतः इस घटना को श्रद्धाभाव से देखा जाना चाहिए। इसके अलावा इसके इकलौतेपन की एक और निशानी है, वह यह कि इस घोटाले से कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ। इस घटना से क्षुब्ध होकर यदि किसी एक जानवर ने भी आत्महत्या की हो, तो बताइए। भई ऐसा तो है नहीं कि चारा घोटाले के बाद हमारे देश में घास उगनी बंद हो गयी हो। इस हरे-भरे देश में चारे की कोई कमी नहीं, चाहे कोई कितना भी चरे।
Read Comments